Friday, December 31, 2010

dedi........

कितनी मासूम सी सदायें देदी....

उसने तोहफे में मुझे सर्द हवाएं देदी.....

कुछ देने को पास न था शायद उसके.....

चन्द लम्हों में बरसों की वफायें मैंने........

मैंने मांगे थे गम उसके चेहरे के....

उसने हंसने की सारी अदाएं दे दी....

Friday, December 24, 2010

जब दिल में तेरे जाने का ख़याल आया...
मुझे ज़िन्दगी पे अपनी बस मलाल आया....
क्यूँ कर मुक़म्मल है साँसे अब तक...
खुदा के लिए बस ये सवाल आया.....
kaise kahoon ke zindagi me tujhse bad ke kya hai......
tere muqabil to khud zindagi hi nahin..........

Friday, December 17, 2010

फलसफा.....

ajeeb falsafa ye zindagi ka raha.....
na main ab main raha na too ,too raha....

Tuesday, November 23, 2010

gina diye.....

आज फिर उसने मुझे मेरे नाम गिना दिए....
वक़्त बे वक़्त के सारेसलाम गिना दिए....
मेरे करम का तो हिसाब न था पास उसके....
गाहे गाहे के थे जो सारे इलज़ाम गिना दिए.....
जिन से डरता मैं ही नहीं मेरी रूह भी है....
आज उसने मुहब्बत के वो सारे अंजाम गिना दिए....
मरासिम जो बचा था टूटे खँडहर सा....
वो आये और रिश्तों के एहतराम गिना दिए.....
मेरे रोज़ों से तो ताल्लुक भी न रक्खा कभी...
लेकिन इफ्तारी के वो सारे काम गिना दिए......

on my b'day....18 nov.

आज एक और साल उम्र का मैंने पार कर लिया.....
पहले का था बाक़ी फिर और उधार कर लिया.....
अब ऐ मौत तू भी अदाएं ना दिखा सनम की तरह.....
पहले ही बहोत तेरा इंतज़ार कर लिया.....

Monday, November 22, 2010

इल्म न था.....

मुझको तो इल्म ही न था उनके ख़यालों का .....

कैसे दूं जवाब उन मासूम सवालों का......

जिस ने काटी हो आवारगी में एक उम्र सड़कों पे....

वो क्या रक्खे हिसाब अपने पैर के छालों का....

आँखों में है अश्क होंठों पे हंसी है.....

यही है हश्र शायद गुज़रे हुए सालों का...

Sunday, November 7, 2010

वक़्त.....

सुलझा के वक़्त जो सोया सुकून से.....
वो आये हैं उलझी लटों में कब्र में फातहा पढने

Monday, November 1, 2010

लिखता हूँ...

आज उन तमाम रातों का हिसाब लिखता हूँ...
दुनिया से जो कह न सका वो जवाब लिखता हूँ....
मुझसा कोई जाहिल नहीं है शहर में....
चलो आज से खुद पे किताब लिखता हूँ.....
मेरी हकीमी है बस तज़ुर्बाकारी की....
मरीज़े इश्क की दवामैं शराब लिखता हूँ...
वो दूर भी है और उसमे नूर भी है......
बस इसीलिए तो उन्हें महताब लिखता हूँ...
दिल का गुलशन उम्र सा सुफैद हुआ...
उनके दीदार को मैं अपना खिजाब लिखता हूँ....

Saturday, October 23, 2010

आजमाया न होता....

इन दो ही चीज़ों से चैन मुक़र्रर रहता मेरा...
या तो उनको पाया न hota या उनको आजमाया न होता...
सबब हैं अश्क मेरे , उन पुरनम निगाहों के...
ऐ काश दिल उनका तोड़ के मैं मुस्कुराया न होता....
मैं भी देखता उनको खुश आखरी बार.....
मेरे दोस्तों ने गर चेहरे पे कफ़न न ओढाया होता ...
रातें कटती न मेरी यूँ जागकर.....
गर maine उस रात उन्हें न रुलाया होता.....
जीत लेता मैं भी दुनिया कोशिशों से अपनी....
खुदा को अगर दुश्मन मैंने न बनाया होता....

Saturday, October 9, 2010

माँ....

जीवन का ये अनुभव शायद कुछ ज्यादा तीखा है....
दर्द में भी मुस्कुराना मैंने माँ से सीखा है......
ना गंगा में स्नान किये ,न देखा कोई तीरथ...
माँ के आँचल में सोना, ये सब करने सरीखा है....
हर बात को सुनना गौर से और करना कोई सवाल नहीं...
ये माँ की ही तहज़ीब है.....ये ही माँ का सलीका है...
हैं ज़माने में हर रिश्ता अपने ही बस मतलब का....
बेमतलब बस देते जाना ये बस माँ का तरीका है....

Wednesday, September 15, 2010

जाने कब...

उनसे मिल पायें....ऐसा जाने कब होगा ......
आँखे बंद हो जाएँगी शायद ,ऐसा तब होगा.....
खुदा होगा एक ओर दूजी ओर सनम....
कैसा होगा वो पल क्या गज़ब होगा........
सनम की मुहब्बत हो इबादत की तरह...
कब ज़माने ऐसा कोई मजहब होगा......
उनका यूँ आना ओर बरसना बादलों की तरह....
ऐसी बे मौसम बरसात कोई और ही मतलब होगा....
अब जाके हुआ है इल्म मेरी मुहब्बत का....
या के इस मुलाक़ात का भी, कोई और मकसद होगा....

Saturday, September 11, 2010

उनकी ख़ुशी...

मेरे बगैर भी अब वो खुश रहता है......
याद करता नहीं मगर याद रहता है.......
मेरी बरबादियो का जश्न मैं क्यूँ ना करूँ ....
उन्ही की खातिर तो वो आबाद रहता है.....
मेरे अश्क ख़ुशी का सबब हैं मेरी ....
उन्ही से यार मेरा दिलशाद रहता है.....

Friday, September 3, 2010

तुने जो किये थे वादे मुहब्बत के दिनों में....
मैंने तेरे बगैर उन्ही से गुज़ारा कर लिया.....
यूँ तो चमन-ऐ-दिल वीरान था वीरान रहा...
फिर तेरा नाम लेकर मैंने जशने-बहारा कर लिया....
ये क्या बात के कल तक तो तू साथ थी मेरे.....
आया जो वक़्त-ऐ- सैलाब तो किनारा कर लिया.....
ख्वाब के मेरे मकां में बस एक ही तो कमरा था....
उसमे भी तूने आके बंटवारा कर लिया....
यूँ तो अक्सर जीतना कम्बक्ख्त फितरत थी मेरी....
पर तेरे कहने से हर मात को गंवारा कर लिया.....

Wednesday, August 18, 2010

बात सुबह की.....

वो कल रात ख्वाब में आये थे.....
फिर मेरे गम मुस्कुराये थे.....
वो पलो में कर गए हरे ,ज़ख्म सारे....
जो बाद अरसे के बस ,ज़रा से मुरझाये थे.......
वो सारे शिकवे गिले कह भी न सके.....
शायद कुछ पलों की ही मुहलत लाये थे.....
वो कर गए हर एक करम का हिसाब....
सितम जिनके हमने हजारों भुलाये थे....
उनकी आँखों में थी रंगत इतनी ........
देख के ,मेरे अश्क भी मुस्कुराये थे......
मेरी पुरनम आँखों ने जो भी कहा .....
शायद वो भी वही सुनने आये थे...
कल रात वो मेरे ख्वाब में आये थे......

Friday, July 30, 2010

न था कुछ तो खुदा था ......
न होता कुछ तो खुदा होता........
गर नाम ही पहचान है ज़माने में.....
तो काश नाम मेरा वफ़ा होता.......
वो था तकदीर में मेरी शायद.....
वरना क्यूँ हर मोड़ यूँ मिला होता.....
खुदा ने हमसे अब मुह मोड़ लिया है....
जो था दिल में वो ऐसे न जुदा होता......
कभी कभी दिल पूछता है ,के क्या वो भी परेशां है मेरी तरह.....
फिर क्यूँ छिपाते हैं अश्क ,खोलते नहीं दिल की गिरह...
या तो वो थे अनजान या मैं दीवाना था....
ऐ खुदा तू ही बता दे इस गम की वजह.....

Wednesday, July 28, 2010

न था गुमां हमे के क्या होगा तेरे शहर में आके......
वहां हर दिन ईद होती थी यहाँ हर रात फाके ......
एक रोज़ पूछा था पता मस्जिद का......
किसी ने कहा के किससे मिलोगे वहां जाके......
कुछ तो उसकी पलके भी नम हुई होंगी....
गया था जो मुझे एक रोज़ देर तक रुलाके.....
किसी को गुमां नहीं हुआ मेरे गम का......
इस कदर मिला मैं सब से मुस्कुरा के........

Friday, July 16, 2010

न तो दोस्त है न रकीब है ........
तेरा शहर कितना अजीब है .......
आँखों में है रंज हंसी होंठों पर
बड़ी ही अलग यहाँ तहज़ीब है.....

Friday, June 25, 2010

मैं आज सिर्फ मुहब्बत के गम याद करूंगा
ये और बात है के तेरा नाम आ जाए .....
इस जिंदगी में यूँ तो ,किसी का दखल नहीं
पर देखें मर के ,शायद किसी के काम आ जाएँ....
दुनिया की खातिर तो हर दर्द सह लेंगे वो ....
पर बात हो मेरी तो मुश्किल तमाम आजायें....
मेरी मौत से तो दुनिया में कोई फर्क नहीं
पर डरता हूँ के उन पर ना कोई इलज़ाम आजाए...

Friday, June 11, 2010

कौन सुनेगा किस को सुनाएँ......

हर एक आदमी अपनी पर्सनल प्रोब्लम्स से इतना परेशान है किसी को किसी के लिए वक़्त ही नहीं है और फिर ऐसी कंडीशन में हर कोई अपने आप में बस घुटता रहता है मैं ये नहीं कहता के अकेला ही इस बात से खफा हूँ के कोई मुझे गले लग के रोने की इजाज़त क्यों नहीं दे देता मैं भी चाहता हूँ के आज अपनी उस हर गलती के लिए जो मैंने जाने अनजाने में की है उन्हें माफ़ कर के मुझे ये कह दे के रोले आज जी भर के....पर यहाँ किस के पास वक़्त है .....कौन सुनेगा और किसको सुनाएँ..................

Saturday, May 22, 2010

wo ya main.......

एक ही बात बारबार दोहराने से शायद उसकी महत्ता कम हो जाती है फिर चाहे वो कितनी भी सही और उचित क्यों न हो....पर मैं ऐसा सोचता हूँ के कोई क्यूँ एक ही बात बार कहे हमे उसे पहले ही समझ लेना चाहिए के सामनेवाला चाहता क्या है ?और मैं ये सोचता हूँ के अगर मैं कोई बात अपने किसी ख़ास को समझा नहीं पाता तो गलत वो नहीं मैं हूँ और शायद मैं उसे जो मेरी ज़िन्दगी में सबसे ख़ास है उसे ही नहीं समझा पाता और शायद मैं भी उसे नहीं समझ पाता तो फिर फैसला कैसे हो कौन है इसके लिए जिम्मेवार वो...... या.......मैं.................

Friday, May 14, 2010

Talaash

ज़िन्दगी को हर पल जैसे किसी चीज़ की तलाश रहती है कभी वो जीत होती है तो कभी कोई ऐसी चीज़ जो अपनी नहीं ....लेकिन ये तलाश कभी पूरी नहीं होतो क्योंकि अगर ये तलाश किसी की भी पूरी हो गयी होती तो कोई तो इस दुनिया ठहरा हुआ दिखाई पड़ता लेकिन हर एक इंसान बस भाग रहा है ....कोई पैसों के लिए तो कोई किसी को पाने के लिए अगर हर किसी का कोई लक्ष है तो वो है संतुष्टि और वो तो उसे भी नहीं होगी जिसने ये सारा का सारा संसार रचा है......लेकिन फिर भी कभी कभी ठहर जानेको दिल करता है कभी तो ये तलाश पूरी हो.....शायद मौत के बाद ही जिंदगी के सही मायने समझ में आते हैं......

Monday, April 19, 2010

khushi

ज़िन्दगी में खुश होना बड़ा अजीब सा काम है ,आप को लगता है के आप जिस बात से खुश हो शायद उसी बात से कोई और बहुत ज्यादा दुखी होता है इसलिए किसी और की ख़ुशी में खुद की ख़ुशी ढूँढनी पड़ती है क्यों के किसी और को बदल पाना शायद आपके हाथ में नहीं लेकिन खुद को बदल पाना शायद मुनासिब हो सके.......

मैंने हंसने का वादा किया था कभी इसलिए अब सदा मुस्कुराता हूँ मैं .........

Friday, March 12, 2010

आत्महत्या...

एक राइटर इमाइल दुर्खिम ने लिखा है के "किसी भी अस्थायी समस्या का स्थायी हल है ''आत्महत्या'' "लेकिन मैं इस बात से शायद सहमत नहीं हूँ मुझे ये लगता है कोई कैसे रोज़ के रोज़ एक जैसी समस्याओं को फेस कर सकता है कौन कहता है के ज़िन्दगी में समस्याएं बदलती जाती हैं मुझे नहीं लगता मेरे साथ तो हमेशा से एक ही रही है और वोही के जिस काम से कोई एक खुश है उससे कोई और नाराज़ है और वो जिस से मैं खुश हूँ उससे तो साडी दुनिया ही नाराज़ है तो फिर जरिया और सोल्यूशन एक ही बच पाता है के उस चीज़ को ही ख़त्म कर दिया जाये जो साड़ी मुसीबतों की जड़ है और वो कोई और नहीं मैं हूँ फिर कहाँ का समाजशास्त्र और कहाँ किसी के अनुभव....

Tuesday, March 2, 2010

अजीब सा एक रिश्तों का ताना बना है जो हमे बांधे रहता है .रोज़ की नयी उलझनों तकलीफों के बाद भी जाने क्यों हमने अपने आप को इतना मजबूत कर लिया है के कुछ भी हो जाये हम उसके लिए कोई न कोई कारण ढून्ढ लेते हैं के और भी बुरा हो सकता था....
मैंने अपनी ज़िन्दगी में हर वो ही काम किया जो मैं करना चाहता था जैसे शादी अपनी मर्ज़ी से की पढाई जो मुझे करनी थी वोही की दिर भी आज जिस मोड़ पे खड़ा हूँ वहां से न तो आगे जा पा रहा हूँ और नाही लौट पा रहा हूँ...
और आज भी यही दावा करता हूँ के दुनिया मुझे समझ नही पाई क्या पता ऐसा मुझे ही लगता है या सभी को....

Friday, January 8, 2010

कुछ रिश्ते जो उस ऊपर वाले ने नहीं बनाये
उन रिश्तों की अहमियत हमारे लिए कभी कभी इतनी क्यों हो जाती है
के हम उन रिश्तों को भी भूल जाते हैं जो उस खुदा ने हमारे लिए सब कुछ सोच समझ के बनाये है...
और ऐसे ही कुछ रिश्ते जो होते तो हैं पर हम उन्हें कभी ज़माने के सामने ला ही नहीं पाते क्यों ?
जब इंसान उस रिश्ते को दुनिया को नहीं दिखा तो क्यों उनका अस्तित्व होता है
और जब हर इंसान का कोई न कोई रिश्ता उसी के दिल दफ़न है तो क्यों स्वयं को श्रेष्ठ और चरित्रवान दिखाने के लिए बार बार दिल के अरमानो का गला घोंटता रहता है.......


दिल जिस चीज़ को हाँ कहता है ज़हन उसी को कहता है ना
इश्क में उफ़ ये खुद ही से लड़ना एकदम सजा है सीने में.....

Monday, January 4, 2010

एक मासूम सी मोहब्बत मेरे नाम कर दो...
एक सुबह को मिलो मुझसे और उसे शाम कर दो .....
बड़े अरमानो से सेज सजाई है मैंने .....
उन गुलो को देख दिल मेरा गुलफाम कर दो......

Saturday, January 2, 2010

जीने दो....

हमेशा से ही जिंदगी में कोई न कोई बंधन रहा है....
कुछ वक़्त पहले तक माँ बाप के अरमान पूरे करने की लड़ाई दिल और दिमाग के बीच चलती थी
और आज पत्नी और कल शायद बच्चों के लिए जीना होगा ......इन सब के बीच अगर कोई पिसता है
तो वो मैं हूँ हो सकता है के मेरी पत्नी भी यहोई सोचती हो.....
क्या फर्क पड़ता है जब के दोनों हो और दोनों क्या हम सब ही इसी लड़ाई में पिस पिस कर खुद को जीवित दिखाई पड़ते हैं.... एकदम बार मैं सब से और खुद से बस ये ही कहना चाहता हूँ के एक बार मुझे जी लेने दो .........