Friday, September 3, 2010

तुने जो किये थे वादे मुहब्बत के दिनों में....
मैंने तेरे बगैर उन्ही से गुज़ारा कर लिया.....
यूँ तो चमन-ऐ-दिल वीरान था वीरान रहा...
फिर तेरा नाम लेकर मैंने जशने-बहारा कर लिया....
ये क्या बात के कल तक तो तू साथ थी मेरे.....
आया जो वक़्त-ऐ- सैलाब तो किनारा कर लिया.....
ख्वाब के मेरे मकां में बस एक ही तो कमरा था....
उसमे भी तूने आके बंटवारा कर लिया....
यूँ तो अक्सर जीतना कम्बक्ख्त फितरत थी मेरी....
पर तेरे कहने से हर मात को गंवारा कर लिया.....

2 comments:

  1. यूँ तो अक्सर जीतना कम्बक्ख्त फितरत थी मेरी....
    पर तेरे कहने से हर मात को गंवारा कर लिया.....

    क्या खूब लिखा है
    बधाई

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