Saturday, April 27, 2013

Guzarish nahi rahi....

वक़्त के साथ पैरों में यूँ तो लर्ज़िश नहीं रही......
पर तेरे जाने के बाद सीने में कोई ख्वाहिश नहीं रही.......

है ज़िन्दगी मेरी  खुशनुमा दुनिया के वास्ते......
पर तू नहीं तो इसकी भी नुमाइश नहीं रही........

लरजते हुए होंठों में क़ैद लव्ज़ यूँ तो हज़ार हैं.....
फिर भी तेरे मुक़ाबिल कोई गुज़ारिश नहीं रही......

 जब से कहा है सिफ़र खुद को सिफ़र  ने.....
दुनिया की मुझपे कोई आज़माइश नहीं रही.........

अब के टूटे तो संवर न पाएंगे कभी.....
उन मरासिमों में अब कोई गुंजाईश नहीं रही.......