Saturday, May 22, 2010
wo ya main.......
एक ही बात बारबार दोहराने से शायद उसकी महत्ता कम हो जाती है फिर चाहे वो कितनी भी सही और उचित क्यों न हो....पर मैं ऐसा सोचता हूँ के कोई क्यूँ एक ही बात बार कहे हमे उसे पहले ही समझ लेना चाहिए के सामनेवाला चाहता क्या है ?और मैं ये सोचता हूँ के अगर मैं कोई बात अपने किसी ख़ास को समझा नहीं पाता तो गलत वो नहीं मैं हूँ और शायद मैं उसे जो मेरी ज़िन्दगी में सबसे ख़ास है उसे ही नहीं समझा पाता और शायद मैं भी उसे नहीं समझ पाता तो फिर फैसला कैसे हो कौन है इसके लिए जिम्मेवार वो...... या.......मैं.................
Friday, May 14, 2010
Talaash
ज़िन्दगी को हर पल जैसे किसी चीज़ की तलाश रहती है कभी वो जीत होती है तो कभी कोई ऐसी चीज़ जो अपनी नहीं ....लेकिन ये तलाश कभी पूरी नहीं होतो क्योंकि अगर ये तलाश किसी की भी पूरी हो गयी होती तो कोई तो इस दुनिया ठहरा हुआ दिखाई पड़ता लेकिन हर एक इंसान बस भाग रहा है ....कोई पैसों के लिए तो कोई किसी को पाने के लिए अगर हर किसी का कोई लक्ष है तो वो है संतुष्टि और वो तो उसे भी नहीं होगी जिसने ये सारा का सारा संसार रचा है......लेकिन फिर भी कभी कभी ठहर जानेको दिल करता है कभी तो ये तलाश पूरी हो.....शायद मौत के बाद ही जिंदगी के सही मायने समझ में आते हैं......
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