हर शै पे ऐ खुदा मुझे आज़माता क्यों है......
मेरे साथ मुस्कुरा मुझपे मुस्कुराता क्यों है …
जब मुक़म्मल नहीं साथ तो छोड़ दे दामन मेरा....
झूठी कस्मे साथ निभाने की खाता क्यों है ....
दी ज़िन्दगी है तूने अकेले मुझी को नहीं। ....
फिर मुझी को हर बार ये जताता क्यों है....
सिफर के वास्ते … तेरे बस्ते में जब कुछ भी नहीं। …
फिर ज़िन्दगी का पाठ मुझको पढ़ाता क्यों है
मेरे साथ मुस्कुरा मुझपे मुस्कुराता क्यों है …
जब मुक़म्मल नहीं साथ तो छोड़ दे दामन मेरा....
झूठी कस्मे साथ निभाने की खाता क्यों है ....
दी ज़िन्दगी है तूने अकेले मुझी को नहीं। ....
फिर मुझी को हर बार ये जताता क्यों है....
सिफर के वास्ते … तेरे बस्ते में जब कुछ भी नहीं। …
फिर ज़िन्दगी का पाठ मुझको पढ़ाता क्यों है