Monday, April 21, 2014

कुछ शेर जो डायरियों में दम तोड़ रहे थे…



हम तो हमेशा से ही बेफिक्र , बेपरवाह थे……
होते जो फिक्रमंद तो तेरे साथ न होते…।

कर लेता हूँ रोज़ एक गुनाह बस ये सोचकर…
के जन्नत में मिलना तुझसे दोबारा न हो जाए ....


फितरत नहीं बदली फ़क़त इस कारण मैने…
के तूने भी तो इसी सिफर से प्यार किया था ..


देदेना सारे दर्द इसी ज़िन्दगी में ऐ खुदा ...
अगले जनम में कोई उधारी नहीं चाहिये…



फूल बेचता रहता हूँ कब्रिस्तान के बाहर....
क्या पता किस कब्र में मेरे अरमान दफ़न हों…… 

Friday, April 18, 2014

मैं अक्सर तेरे बारे में जब सोचता रहता हूँ। .......
 सच मान खुद में खुद को खोजता रहता हूँ....

तेरी यादों के भंवर से निकलना नामुमकिन तो नही ....
तैरना जान कर भी मैं इसमें डूबता रहता हूँ। ……


हर शै पे खता है मेरी  तो सजा मुझको मिले....
मैं खुद दुआओं में यही मांगता रहता हूँ। ....




Friday, April 11, 2014

ताहद ऐ नज़र तेरा साया भी दिखाई नहीं देता,,,,,,
फिर क्यों इन कानो को तेरे सिवा कुछ भी सुनाई नहीं देता,,,,

एक अरसा हो गया दुनिया को देखे हुए मिले हुए,,,,
तू सनम मुझको इस कैद से क्यों रिहाई नहीं देता,,,,,

सोचता हूँ के तुझसे मिलूं एक बार तुझसा हो कर,,,,,
फिर जाने क्यों इसकी इजाज़त मेरा इलाही नहीं देता,,,,

तेरे हर एक वादे पे ऐतबार हो जाता 'सिफर' को ,,,,
पर होता न तू कुसूरवार तो इतनी सफाई नहीं देता,,,,,