Friday, April 11, 2014

ताहद ऐ नज़र तेरा साया भी दिखाई नहीं देता,,,,,,
फिर क्यों इन कानो को तेरे सिवा कुछ भी सुनाई नहीं देता,,,,

एक अरसा हो गया दुनिया को देखे हुए मिले हुए,,,,
तू सनम मुझको इस कैद से क्यों रिहाई नहीं देता,,,,,

सोचता हूँ के तुझसे मिलूं एक बार तुझसा हो कर,,,,,
फिर जाने क्यों इसकी इजाज़त मेरा इलाही नहीं देता,,,,

तेरे हर एक वादे पे ऐतबार हो जाता 'सिफर' को ,,,,
पर होता न तू कुसूरवार तो इतनी सफाई नहीं देता,,,,,

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