उनसे मिल पायें....ऐसा जाने कब होगा ......
आँखे बंद हो जाएँगी शायद ,ऐसा तब होगा.....
खुदा होगा एक ओर दूजी ओर सनम....
कैसा होगा वो पल क्या गज़ब होगा........
सनम की मुहब्बत हो इबादत की तरह...
कब ज़माने ऐसा कोई मजहब होगा......
उनका यूँ आना ओर बरसना बादलों की तरह....
ऐसी बे मौसम बरसात कोई और ही मतलब होगा....
अब जाके हुआ है इल्म मेरी मुहब्बत का....
या के इस मुलाक़ात का भी, कोई और मकसद होगा....
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