Saturday, October 9, 2010

माँ....

जीवन का ये अनुभव शायद कुछ ज्यादा तीखा है....
दर्द में भी मुस्कुराना मैंने माँ से सीखा है......
ना गंगा में स्नान किये ,न देखा कोई तीरथ...
माँ के आँचल में सोना, ये सब करने सरीखा है....
हर बात को सुनना गौर से और करना कोई सवाल नहीं...
ये माँ की ही तहज़ीब है.....ये ही माँ का सलीका है...
हैं ज़माने में हर रिश्ता अपने ही बस मतलब का....
बेमतलब बस देते जाना ये बस माँ का तरीका है....

1 comment:

  1. bahut..khoob

    Na ganga me snaan kiye na dekha koi theerath
    Maa k aanchal me sona sab karne sarikha hai....

    really nice....

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