Friday, March 12, 2010

आत्महत्या...

एक राइटर इमाइल दुर्खिम ने लिखा है के "किसी भी अस्थायी समस्या का स्थायी हल है ''आत्महत्या'' "लेकिन मैं इस बात से शायद सहमत नहीं हूँ मुझे ये लगता है कोई कैसे रोज़ के रोज़ एक जैसी समस्याओं को फेस कर सकता है कौन कहता है के ज़िन्दगी में समस्याएं बदलती जाती हैं मुझे नहीं लगता मेरे साथ तो हमेशा से एक ही रही है और वोही के जिस काम से कोई एक खुश है उससे कोई और नाराज़ है और वो जिस से मैं खुश हूँ उससे तो साडी दुनिया ही नाराज़ है तो फिर जरिया और सोल्यूशन एक ही बच पाता है के उस चीज़ को ही ख़त्म कर दिया जाये जो साड़ी मुसीबतों की जड़ है और वो कोई और नहीं मैं हूँ फिर कहाँ का समाजशास्त्र और कहाँ किसी के अनुभव....

2 comments:

  1. "उस चीज़ को ही ख़त्म कर दिया जाये जो साड़ी मुसीबतों की जड़ है" कदापि नहीं - मैं अपनी असहमित दर्ज करना चाहूँगा - शुभकामनाएं

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  2. आत्म हत्या किसी समस्या का हल नहीं ये व्यक्ति की कमज़ोरी की निशानी है बस,

    जलाए रखना उमीदों के ,हौसलों के चराग़
    कि नूर उतरेगा इक रोज़ तेरे आंगन में

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