Tuesday, March 2, 2010

अजीब सा एक रिश्तों का ताना बना है जो हमे बांधे रहता है .रोज़ की नयी उलझनों तकलीफों के बाद भी जाने क्यों हमने अपने आप को इतना मजबूत कर लिया है के कुछ भी हो जाये हम उसके लिए कोई न कोई कारण ढून्ढ लेते हैं के और भी बुरा हो सकता था....
मैंने अपनी ज़िन्दगी में हर वो ही काम किया जो मैं करना चाहता था जैसे शादी अपनी मर्ज़ी से की पढाई जो मुझे करनी थी वोही की दिर भी आज जिस मोड़ पे खड़ा हूँ वहां से न तो आगे जा पा रहा हूँ और नाही लौट पा रहा हूँ...
और आज भी यही दावा करता हूँ के दुनिया मुझे समझ नही पाई क्या पता ऐसा मुझे ही लगता है या सभी को....

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