Sunday, April 2, 2017

रंग ऐ  यार ...... 

ना ये सच के रंग ऐ यार से हैरान हूँ मैं 
     दरअसल खुद की आदत से  परेशान हूँ मैं.... 
तेरे वास्ते कोई सबूत लाऊं भी तो कैसे....... 
     एक तुझे छोड़ दुनिया से बे ईमान हूँ मैं...... 

मुझको अपनी भी साँसों की नहीं परवाह कोई 
      सैय्यद समझता है जाने कितनो की जान हूँ मैं..... 

मेरे इन्सां  होने का भी यक़ीन नहीं है उसको 
       दुनिया से जो कहता है के भगवान  हूँ मैं..... 

कुछ भी नहीं  जो  तुमको  दिखाई ना दे 
       अपनी ही ग़ज़ल सा आसान हूँ मैं..... 

मायने लव्ज़ ऐ  सिफर..... वही तो हूँ मैं 
       दो और दो चार की तरतीब से  अनजान हूँ मैं...... 

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