Thursday, October 9, 2014

गुरूर इस बात का के कोई गुरूर न किया …
शुक्र उस खुद का जिसने कभी मगरूर न किया …
ये साथ निभाएंगे मेरा उस आखरी सफर तक.....
बस ये सोच कर इन नामुरादों को कभी खुद से दूर न किया....
हज़ार लम्हे आये के दमन छोड़ दूँ इनका। …
पर वक़्त के इस फैसले को कभी मंज़ूर ना किया …
मेरे इश्क़ ने तो हर बार तेरे दर पे लाकर खड़ा कर दिया....
क्यों कर तेरे दिल ने तुझे कभी मजबूर ना किया …
मेरे  नाम से जुड़ गए लव्ज़ मजनू और राँझा जैसे…
क्यों तेरे दिल ने मुहब्बत को फितूर ना किया....
मेरी फितरत ऐ आवारगी से हासिल फ़क़त इतना था …
सिफर वो कौन सा ज़ख्म था जिसे नासूर ना किया…

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