आज फिर उसने मुझे मेरे नाम गिना दिए....
वक़्त बे वक़्त के सारेसलाम गिना दिए....
मेरे करम का तो हिसाब न था पास उसके....
गाहे गाहे के थे जो सारे इलज़ाम गिना दिए.....
जिन से डरता मैं ही नहीं मेरी रूह भी है....
आज उसने मुहब्बत के वो सारे अंजाम गिना दिए....
मरासिम जो बचा था टूटे खँडहर सा....
वो आये और रिश्तों के एहतराम गिना दिए.....
मेरे रोज़ों से तो ताल्लुक भी न रक्खा कभी...
लेकिन इफ्तारी के वो सारे काम गिना दिए......
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