उनसे मिल पायें....ऐसा जाने कब होगा ......
आँखे बंद हो जाएँगी शायद ,ऐसा तब होगा.....
खुदा होगा एक ओर दूजी ओर सनम....
कैसा होगा वो पल क्या गज़ब होगा........
सनम की मुहब्बत हो इबादत की तरह...
कब ज़माने ऐसा कोई मजहब होगा......
उनका यूँ आना ओर बरसना बादलों की तरह....
ऐसी बे मौसम बरसात कोई और ही मतलब होगा....
अब जाके हुआ है इल्म मेरी मुहब्बत का....
या के इस मुलाक़ात का भी, कोई और मकसद होगा....
Wednesday, September 15, 2010
Saturday, September 11, 2010
उनकी ख़ुशी...
मेरे बगैर भी अब वो खुश रहता है......
याद करता नहीं मगर याद रहता है.......
मेरी बरबादियो का जश्न मैं क्यूँ ना करूँ ....
उन्ही की खातिर तो वो आबाद रहता है.....
मेरे अश्क ख़ुशी का सबब हैं मेरी ....
उन्ही से यार मेरा दिलशाद रहता है.....
याद करता नहीं मगर याद रहता है.......
मेरी बरबादियो का जश्न मैं क्यूँ ना करूँ ....
उन्ही की खातिर तो वो आबाद रहता है.....
मेरे अश्क ख़ुशी का सबब हैं मेरी ....
उन्ही से यार मेरा दिलशाद रहता है.....
Friday, September 3, 2010
तुने जो किये थे वादे मुहब्बत के दिनों में....
मैंने तेरे बगैर उन्ही से गुज़ारा कर लिया.....
यूँ तो चमन-ऐ-दिल वीरान था वीरान रहा...
फिर तेरा नाम लेकर मैंने जशने-बहारा कर लिया....
ये क्या बात के कल तक तो तू साथ थी मेरे.....
आया जो वक़्त-ऐ- सैलाब तो किनारा कर लिया.....
ख्वाब के मेरे मकां में बस एक ही तो कमरा था....
उसमे भी तूने आके बंटवारा कर लिया....
यूँ तो अक्सर जीतना कम्बक्ख्त फितरत थी मेरी....
पर तेरे कहने से हर मात को गंवारा कर लिया.....
मैंने तेरे बगैर उन्ही से गुज़ारा कर लिया.....
यूँ तो चमन-ऐ-दिल वीरान था वीरान रहा...
फिर तेरा नाम लेकर मैंने जशने-बहारा कर लिया....
ये क्या बात के कल तक तो तू साथ थी मेरे.....
आया जो वक़्त-ऐ- सैलाब तो किनारा कर लिया.....
ख्वाब के मेरे मकां में बस एक ही तो कमरा था....
उसमे भी तूने आके बंटवारा कर लिया....
यूँ तो अक्सर जीतना कम्बक्ख्त फितरत थी मेरी....
पर तेरे कहने से हर मात को गंवारा कर लिया.....
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