मुझको तो इल्म ही न था उनके ख़यालों का .....
कैसे दूं जवाब उन मासूम सवालों का......
जिस ने काटी हो आवारगी में एक उम्र सड़कों पे....
वो क्या रक्खे हिसाब अपने पैर के छालों का....
आँखों में है अश्क होंठों पे हंसी है.....
यही है हश्र शायद गुज़रे हुए सालों का...
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