Monday, November 1, 2010

लिखता हूँ...

आज उन तमाम रातों का हिसाब लिखता हूँ...
दुनिया से जो कह न सका वो जवाब लिखता हूँ....
मुझसा कोई जाहिल नहीं है शहर में....
चलो आज से खुद पे किताब लिखता हूँ.....
मेरी हकीमी है बस तज़ुर्बाकारी की....
मरीज़े इश्क की दवामैं शराब लिखता हूँ...
वो दूर भी है और उसमे नूर भी है......
बस इसीलिए तो उन्हें महताब लिखता हूँ...
दिल का गुलशन उम्र सा सुफैद हुआ...
उनके दीदार को मैं अपना खिजाब लिखता हूँ....

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