कुछ शेर जो डायरियों में दम तोड़ रहे थे…
हम तो हमेशा से ही बेफिक्र , बेपरवाह थे……
होते जो फिक्रमंद तो तेरे साथ न होते…।
कर लेता हूँ रोज़ एक गुनाह बस ये सोचकर…
के जन्नत में मिलना तुझसे दोबारा न हो जाए ....
फितरत नहीं बदली फ़क़त इस कारण मैने…
के तूने भी तो इसी सिफर से प्यार किया था ..
देदेना सारे दर्द इसी ज़िन्दगी में ऐ खुदा ...
अगले जनम में कोई उधारी नहीं चाहिये…
फूल बेचता रहता हूँ कब्रिस्तान के बाहर....
क्या पता किस कब्र में मेरे अरमान दफ़न हों……
हम तो हमेशा से ही बेफिक्र , बेपरवाह थे……
होते जो फिक्रमंद तो तेरे साथ न होते…।
कर लेता हूँ रोज़ एक गुनाह बस ये सोचकर…
के जन्नत में मिलना तुझसे दोबारा न हो जाए ....
फितरत नहीं बदली फ़क़त इस कारण मैने…
के तूने भी तो इसी सिफर से प्यार किया था ..
देदेना सारे दर्द इसी ज़िन्दगी में ऐ खुदा ...
अगले जनम में कोई उधारी नहीं चाहिये…
फूल बेचता रहता हूँ कब्रिस्तान के बाहर....
क्या पता किस कब्र में मेरे अरमान दफ़न हों……
No comments:
Post a Comment