क्यों किसी को हाल ऐ दिल सुनाया जाये …
अपने ही ज़ख्मों को क्यों न कुरेद के पकाया जाए..
दिल हो दर्द में तो सुकूँ मिलता है...
क्यों ना बागे दिल में शजर दर्द का लगाया जाये …
जब सुकून यहीं है दरे ख़ुदा से ज़्यादा ....
ये जो बाक़ी है जगह यहाँ मैख़ाना बनाया जाये ....
अभी बातों में फरेब है और अधूरी है…
सिफ़र ऐ यार को एक जाम और पिलाया जाये ....
अपने ही ज़ख्मों को क्यों न कुरेद के पकाया जाए..
दिल हो दर्द में तो सुकूँ मिलता है...
क्यों ना बागे दिल में शजर दर्द का लगाया जाये …
जब सुकून यहीं है दरे ख़ुदा से ज़्यादा ....
ये जो बाक़ी है जगह यहाँ मैख़ाना बनाया जाये ....
अभी बातों में फरेब है और अधूरी है…
सिफ़र ऐ यार को एक जाम और पिलाया जाये ....
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