Sunday, April 2, 2017

रंग ऐ  यार ...... 

ना ये सच के रंग ऐ यार से हैरान हूँ मैं 
     दरअसल खुद की आदत से  परेशान हूँ मैं.... 
तेरे वास्ते कोई सबूत लाऊं भी तो कैसे....... 
     एक तुझे छोड़ दुनिया से बे ईमान हूँ मैं...... 

मुझको अपनी भी साँसों की नहीं परवाह कोई 
      सैय्यद समझता है जाने कितनो की जान हूँ मैं..... 

मेरे इन्सां  होने का भी यक़ीन नहीं है उसको 
       दुनिया से जो कहता है के भगवान  हूँ मैं..... 

कुछ भी नहीं  जो  तुमको  दिखाई ना दे 
       अपनी ही ग़ज़ल सा आसान हूँ मैं..... 

मायने लव्ज़ ऐ  सिफर..... वही तो हूँ मैं 
       दो और दो चार की तरतीब से  अनजान हूँ मैं...... 

जागता रहूँगा



मैं जागता रहूँगा यूँ ही ..... सुनो तुम सो जाना
मैं ढूंढ लूंगा इक दिन खुद को फिर मुझमे खो जाना

अभी ये वक़्त के इम्तिहान पार करने हैं मुझको
दुनिया में दो और दो चार करने हैं मुझको
बस जब पुकारूँ तुम्हे तुम चले आना...
मैं जागता रहूँगा......

तुम भी मेरे साथ क्यों परेशान  होते हो
ज़माने की चाल पे क्यूँ हैरान होते  हो
मैं सुनाऊंगा हर बार किस्सा बस सुनते जाना
मैं जागता रहूँगा यूँ ही.......

तुम्हे लाया हूँ हाथ थाम कर तो छोडूंगा नहीं कभी
वादे किसी भी दौर के तोडूंगा नहीं कभी
इस टूटी नाव की बस तुम भी पतवार हो जाना
मैं जागता रहूँगा यूँ ही .....



पर तुम भी गर ज़माने के साथ हो लिए
फिर तो हौसले सिफर के सब ख़ाक हो लिए
फिर होगा हासिल फ़क़त खाकसार हो जाना
फिर..... तुम जागती रहना मैं सो जाऊंगा

06 नवम्बर 2016



कुछ  शेर .. ग़ज़ल के

क्या हुआ किसी को ... कुछ भी तो नहीं
बदला तेरे बगैर कुछ भी तो नहीं
यूँ ही चल रहा जैसा चलता आया है
कौन अपना काहे का गैर कुछ भी तो नहीं
पल भर को होती हैं रंजिश सब से
मिला क्या रख के बैर कुछ भी तो नहीं
होगा इतना ही फासला दरमियान हम दोनों के
हो गयी है मुझे थोड़ी देर कुछ भी तो नहीं
ये ही है वसीयत सिफर की मेरे वारिस
चंन्द ग़ज़लें कुछ कागज़ी कब्रें कुछ शेर........कुछ भी तो नहीं




25 नवम्बर 2016