Saturday, October 23, 2010

आजमाया न होता....

इन दो ही चीज़ों से चैन मुक़र्रर रहता मेरा...
या तो उनको पाया न hota या उनको आजमाया न होता...
सबब हैं अश्क मेरे , उन पुरनम निगाहों के...
ऐ काश दिल उनका तोड़ के मैं मुस्कुराया न होता....
मैं भी देखता उनको खुश आखरी बार.....
मेरे दोस्तों ने गर चेहरे पे कफ़न न ओढाया होता ...
रातें कटती न मेरी यूँ जागकर.....
गर maine उस रात उन्हें न रुलाया होता.....
जीत लेता मैं भी दुनिया कोशिशों से अपनी....
खुदा को अगर दुश्मन मैंने न बनाया होता....

Saturday, October 9, 2010

माँ....

जीवन का ये अनुभव शायद कुछ ज्यादा तीखा है....
दर्द में भी मुस्कुराना मैंने माँ से सीखा है......
ना गंगा में स्नान किये ,न देखा कोई तीरथ...
माँ के आँचल में सोना, ये सब करने सरीखा है....
हर बात को सुनना गौर से और करना कोई सवाल नहीं...
ये माँ की ही तहज़ीब है.....ये ही माँ का सलीका है...
हैं ज़माने में हर रिश्ता अपने ही बस मतलब का....
बेमतलब बस देते जाना ये बस माँ का तरीका है....